October 16, 2025
आईपीसी भारतीय दंड संहिताआपराधिक कानूनडी यू एलएलबीसेमेस्टर 1

शेखर वी अरुमुगम 2000

केस सारांश

उद्धरण  
कीवर्ड    
तथ्य    
समस्याएँ 
विवाद    
कानून बिंदु
प्रलय    
अनुपात निर्णय और मामला प्राधिकरण

पूरा मामला विवरण

तथ्य

सेकर ने नवंबर 1994 में बैंक ऑफ मदुरा, कंतोनमेंट शाखा, तिरुचि से अशोक लेलैंड लॉरी की खरीद के लिए 4 लाख रुपये का ऋण लिया था। याचिकाकर्ता ने 9-11-1994 को बैंक के पक्ष में एक हाइपोथेक्शन (आश्वासन) की deed (विवरण पत्र) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत उन्होंने लॉरी को ऋण की चुकौती के लिए सुरक्षा के रूप में हाइपोथेक किया। ऋण 60 मासिक किस्तों में चुकाना था।

हाइपोथेक्शन deed की धारा 14(3) के अनुसार, यदि ऋण किस्तों का भुगतान में कोई चूक होती है, तो बैंक के पास लॉरी को जब्त करने का अधिकार था। हाइपोथेक्शन deed की धारा 15(b) के अनुसार, बैंक को वाहन जब्त करने के बाद उसे बेचने और बिक्री की राशि को बकाया राशि की चुकौती के लिए समायोजित करने का अधिकार प्राप्त होता है।

उन्होंने मासिक किस्तों का भुगतान करने में चूक की। 30-7-1998 को बैंक ने किस्तों का भुगतान न होने के कारण लॉरी को जब्त कर लिया। आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 379 के तहत चोरी के आरोप में निजी शिकायत दर्ज की गई है।

मुद्दा

क्या बैंक चोरी के लिए जिम्मेदार है?

अवलोकन और निर्णय:

जब उत्तरदाता को धारा 14(e) के तहत लॉरी को जब्त करने का अधिकार था, तो यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तरदाता ने लॉरी की चोरी की है जब याचिकाकर्ता ने किस्तों के भुगतान में चूक की और बैंक ने लॉरी को जब्त कर लिया। बैंक लॉरी का मालिक तब तक बना रहता है जब तक सभी किस्तों का भुगतान नहीं हो जाता। बैंक ने चोरी का अपराध नहीं किया। लॉरी को हाइपोथेक्शन के शर्तों और नियमों के अनुसार जब्त किया गया।

Related posts

शायरा बानो बनाम यूओआई, एससी, 22 अगस्त, 2017 को केस विश्लेषण पर निर्णय लिया गया

Dhruv Nailwal

इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कंसल्टेंट्स लिमिटेड बनाम कूली (1972) 1 डब्ल्यू.एल.आर. 443

Tabassum Jahan

नूर सब खातून और मोहम्मद कासिम 1997

Rahul Kumar Keshri

Leave a Comment